2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश में नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) का इस्तेमाल शुरू हुआ था। अगर चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशी मतदाता के लिहाज से उपयुक्त नहीं हैं तो वह नोटा को अपना वोट दे सकता है।
नोटा की शुरूआत करने का उद्देश्य नारिकों को अपना असंतोष व्यक्त करने का मौका प्रदान करना था। नोटा का सबसे पहले इस्तेमाल 2013 में पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव में किया गया था। इसके बाद से सभी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को यह विकल्प मिल रहा है।
2004 की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सिंतबर 2013 को नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि वोट देने के अधिकार में वोट न देने का अधिकार यानी अस्वीकार करने का अधिका भी शामिल है। 
सियासी दलों को जवाबदेह बनाता है नोटा!
नोटा का विकल्प सियासी दलों को प्रत्याशी के चयन में जवाबदेह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगर राजनीतिक दल लगातार गलत प्रत्याशियों को मैदान में उतारते हैं तो नोटा का बटन दबाकर मतदाता अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं। आपको बता दें कि भारत नोटा का विकल्प अपने मतदाताओं को उपलब्ध कराने वाला दुनिया का 14वां देश था।
सबसे पहले यहां हुआ नोटा का इस्तेमाल
भारत निर्वाचन आयोग ने 11 अक्टूबर 2013 से ईवीएम और मतपत्रों में नोटा का विकल्प उपलब्ध कराना शुरू किया था। नोटा का विकल्प मतपत्रों और ईवीएम के अंतिम पैनल में होता है। 2013 में पहली बार नोटा का इस्तेमाल छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में किया गया था।
नोटा को अधिक वोट मिले तो क्या होगा? 
चुनाव आयोग के मुताबिक, नोटा के मतों को गिना जाता है। मगर इन्हें रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाता है। अगर नोटा को 100 फीसदी मत मिलते हैं तो उस निर्वाचन क्षेत्र में दोबारा चुनाव कराया जाएगा। अगर कोई प्रत्याशी एक भी वोट पाता है और बाकी मत नोटा को मिलते हैं तो वह प्रत्याशी विजेता माना जाएगा। नोटा के मतों को रद्द श्रेणी में रखा जाएगा।
2019 लोकसभा चुनाव में नोटा को कितने मत मिले 
2019 लोकसभा चुनाव में नोटा का वोट शेयर 1.06% था। हालांकि, बिहार में सबसे ज्यादा 2.0% नोटा का वोट शेयर था। सबसे कम नोटा का इस्तेमाल नागालैंड में किया गया। यहां नोटा का वोट शेयर कुल मतों का 0.20 फीसदी रहा। 2019 लोकसभा चुनाव में कुल 65,22,772 मत नोटा को पड़े।
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