आर्थिक विकास हासिल करना और अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करना किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में विकसित भारत की यात्रा में पर्यावरण की भूमिका काफी अहम हो जाती है। मौजूदा समय में ऋतु परिवर्तन, बेमौसम बारिश, बाढ़, सूखा, बढ़ता प्रदूषण आदि हमारे जीवन को आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक और स्वास्थ्य में भी प्रभावित कर रहे हैं। हालांकि इन समस्याओं को सरकार ने भांपा है।
भारत की जलवायु परिवर्तन पहल पहले से ही प्रगति कर रही है। जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2023 में भारत ने 8वां स्थान हासिल किया, जबकि केवल चार दावेदार - डेनमार्क, स्वीडन, चिली और मोरक्को उससे ऊपर हैं, और सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले चीन (51), अमेरिका (52) और ईरान (63 सबसे कम) हैं। दिक्कत यह है कि सूचकांक ने इसके लिए योग्य दावेदारों की कमी का हवाला देते हुए शीर्ष तीन स्थानों को खाली रखा है। सीसीपीआई 2022 में भारत 10वें स्थान पर था।
इस तरह भारत ने बेहतर भविष्य के लिए पहले ही दिशा तय कर दी है। हम तेजी से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। अब हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता, तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता, तीसरा सबसे बड़ा एलपीजी का उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा एलएनजी आयातक, चौथा सबसे बड़ा रिफाइनर और चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोप-26, ग्लासगो में पंचामृत की घोषणा कर चुके हैं यानी, पांच चीजें जो भारत की तरफ से पृथ्वी के लिए प्रतिबद्धता है। हमारा कार्बन उत्सर्जन कम होना है, गैर-जीवाश्म ईंधन की तरफ हमें 40 से 50 फीसदी तक बढ़ना है, इसमें सौर, जल से लेकर वायु ऊर्जा तक होगी यानी नवीकरणीय ऊर्जा होगी। हरित कवच को बढ़ाना है।
भारत ने पहले ही एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया है। डी-कार्बनाइजेशन की प्रक्रिया में सतत जीवनशैली अपनाना और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। पीएम ने इसके लिए एक लाइफ मिशन भी लांच किया है, जिसमें ग्रीन क्रेडिट की बात है।
भारत 2047 तक ब्लू इकोनॉमी के बढ़ते योगदान के साथ मजबूत आर्थिक विकास की उम्मीद कर सकता है, जिससे प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद और मानव विकास सूचकांक विकसित दुनिया के बराबर हो जाएगा।
क्लाइमेट चेंज की कार्यकारी निदेशक दिव्या शर्मा कहती हैं कि विकसित भारत 2047 हर भारतीय के लिए विशेष यात्रा है। विश्व इसे विकास की यात्रा समझेगा पर भारत के लिए ये अपने स्वर्णिम इतिहास को पुनर्जीवित करने की यात्रा होगी। हम हमेशा से ही प्रकृति के साथ रहने वाली सभ्यता रहे हैं, प्रकृति का सम्मान, उसका संरक्षण हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग रहा है। आश्चर्य नहीं कि आज भी भारत के प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के आंकड़े अन्य विकसित देशों से कही बेहतर हैं। विकसित भारत की नीतियों में हमारी इसी शक्ति को अग्रिम रखना होगा। विश्व के देश जल्दी से जल्दी नेट जीरो प्राप्त करने को बढ़ावा दे रहे हैं, भारत ने अपने सामने 2070 तक नेट जीरो होने का लक्ष्य रखा है। विकसित भारत की नीतियों में ये लक्ष्य सर्वोपरि होना चाहिए। ये विकास बदलते समय के लिए भारत को तैयार तो करे ही, पर पर्यावरण , प्रकृति और संसाधन की शोषण से परे , उनके संरक्षण पर निर्भर हो।
टेरी की डायरेक्टर जनरल डा. विभा धवन का कहना है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि पर्यावरणीय चिंताओं और विकास की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बदलाव वाली नीतियों के साथ सही तरीके से चला जा सकता है। जैसा कि भारत पर्यावरण और पारिस्थितिक रूप से सुदृढ़ तरीके से आगे विकास करना चाहता है, हमें भूमि, जल और वायु की गुणवत्ता में आई गिरावट की जटिलताओं पर ध्यान देना चाहिए और टिकाऊ विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विकसित भारत के लिए कई विचारों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जैसे स्वच्छ ऊर्जा, लचीले बुनियादी ढांचे और समुदायों को बढ़ाना और स्वच्छ हवा और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर (30 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आकांक्षाओं के बारे में बात करते हुए डब्ल्यूआरआई की कार्यकारी निदेशक उल्का केलकर ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश एनर्जी के क्षेत्र में गरीब रहकर अमीर नहीं बना है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कुछ बड़ी समस्याएं हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने का भारत का उद्देश्य केवल कार्बन लैंस के जरिये नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, ‘जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का जोखिम शुरू होता है, पॉलिसी को भी उसी के मुताबिक अनुकूल और डिसेंट्रलाइज्ड बनाना होगा। यहां तक कि न्यू एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर या ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर भी जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में होंगे।’
सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि ‘जैसे-जैसे जीवाश्म ईंधन कम हो जाएगा, कर राजस्व भी कम हो जाएगा। जब तक हम ग्रीन एनर्जी से राजस्व उत्पन्न करने के नए तरीके नहीं खोजेंगे, 2047 तक 1.5 ट्रिलियन डॉलर (1.5 लाख करोड़ डॉलर) का नुकसान हो जाएगा’।
सरकारी योजनाओं के लक्ष्यों का निर्धारण आवश्यक
नारायण ने कहा कि किसी भी सरकारी योजना का अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होता है कि यह हर बार लोगों तक पहुंचे। अब जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी इसमें शामिल हो गया है, जहां हर दिन देश का कोई न कोई हिस्सा कम से कम एक चरम मौसम की घटना से प्रभावित हो रहा है। इसका विकास कार्यक्रमों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है - चरम मौसम की घटनाओं के कारण सूखा, बाढ़ और आजीविका का नुकसान बढ़ता है, जिससे सरकार के संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
डा. विभा धवन का कहना है कि सभी क्षेत्रों में इंटरैक्शन के साथ, उद्योग को कृषि अपशिष्ट को सामग्री या ऊर्जा रूपों के रूप में रीसाइक्लिंग / प्रसंस्करण करने, उभरती जैव ईंधन प्रौद्योगिकियों में आर एंड डी में निवेश करने, प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं के उपयोग को बढ़ाने में योगदान देना चाहिए। इससे न केवल दक्षता में वृद्धि होगी बल्कि यह जीएचजी उत्सर्जन और स्थानीय प्रदूषकों को भी कम करने में सहायक होगा। इसके अलावा इसका असर संपूर्ण वैल्यू चेन और पानी के संसाधनों पर भी सकारात्मक तौर पर पड़ेगा।
खेती के तरीके में बदलाव से होगा फायदा
डा. विभा धवन का कहना है कि कृषि क्षेत्र के परिणामस्वरूप जीएचजी उत्सर्जन होता है। वहीं जलवायु परिवर्तन, फसल चक्र और पैदावार को भी प्रभावित करता है। हालांकि, फसल पैटर्न में बदलाव का विकल्प खाद्य और पोषण सुरक्षा, भूमि और पानी की उपलब्धता, आजीविका और कृषि आय आदि पर निर्भर करता है। एकीकृत खेती को बढ़ावा देने, कृषि प्रबंधन प्रथाओं में बदलाव, जलवायु प्रतिरोधी और जलवायु अनुकूल फसलें आदि टिकाऊ कृषि विकास में योगदान दे सकती हैं।
इंडस्ट्री को साथ आना होगा
नारायण ने कहा, ‘भारतीय उद्योग परिवर्तन की जरूरतों के बारे में अधिक जागरूक हो रहा है, उन कार्यों को करने के लिए जो उनके साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अच्छे हैं। लोहा, सीमेंट, स्टील जैसे क्षेत्रों में मजबूती की जरूरत है। उद्योग अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है।’ उन्होंने कहा कि ग्रीन एनर्जी फाइनैंसिंग अभी भी प्राइवेट सेक्टर से पिछड़ा हुआ है। हमें जिस परिवर्तन की जरूरत है उसे पूरा करने के लिए पूंजी की लागत अभी भी बहुत ज्यादा है। आप रिन्यूबल एनर्जी प्रोजेक्ट को प्रैक्टिकल नहीं बना सकते।
पृथ्वी तेजी से हो रही गर्म
एक्सपर्ट मानते हैं कि पृथ्वी पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को सीमित करने के लिए कार्बन बजट कम होता जा रहा है। बजट से अधिक होने पर समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, मौसम खराब होगा, गर्मी बढ़ेगी, फसलें खराब होंगी, जलवायु के कारण पलायन होगा, जंगल में आग लगेगी, जैव विविधता खत्म होगी, समुद्र में अम्लता बढ़ेगी और भी बुरा होगा। हम जलवायु परिवर्तन के ऐसे खतरनाक बिंदुओं को भी झेलने के खतरे में होंगे, जिसमें कुछ प्राकृतिक संतुलन अपरिवर्तनीय रूप से नष्ट हो जाएंगे। भारत 2047 तक नेट जीरो हासिल कर सकता है, बशर्ते कि ऊपर से नीचे तक तालमेल और समर्थन हो।
पानी की हर बूंद का इस्तेमाल हो और प्रदूषण पर लगे लगाम
सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि सभी के लिए स्वच्छ जल' प्राप्त करने के लिए, भारत को शहरों में अधिक से अधिक दूर से पानी लाने के तरीके पर पुनर्विचार करना होगा। इससे पानी की बर्बादी होती है और यह वहनीय नहीं है। सुनीता नारायण के मुताबिक हमें तत्काल बड़े पैमाने पर पानी के भंडारण पर काम करने के साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि पानी का वाष्पीकरण कम से कम हो। इसके लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। बढ़ते तापमान के साथ वाष्पीकरण की दर बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि पानी के भंडारण के लिए सबसे बेहतर विकल्प भूमिगत जल भंडारण, या कुओं पर काम करना है। उन्होंने कहा कि स्वच्छ वायु प्राप्त करने के लिए भी बहुत कुछ किया जाना चाहिए। स्वच्छ ऊर्जा के एजेंडे को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। हमें अपने स्वच्छ ऊर्जा पोर्टफोलियो को बढ़ाने की जरूरत है, न केवल बुनियादी ढांचे में निवेश के मामले में बल्कि उत्पादन के मामले में भी। हम जानते हैं कि अक्षय ऊर्जा अब भी देश में कुल बिजली की जरूरतों का 9-11 प्रतिशत आपूर्ति करती है। इसे तेजी से बढ़ाने की जरूरत है।
ऐसा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के कारण होने वाले प्रदूषण को कम करके, प्राकृतिक गैस सहित ईंधन के स्वच्छ स्रोतों को अपनाकर, तथा भारतीय शहरों में मोटरीकरण की बढ़ती संख्या को कम करके किया जा सकता है। समय की मांग है कि अपशिष्ट जल की हर बूंद को रिसाइकिल किया जाए ताकि देश की नदियां नष्ट न हों। नारायण ने कहा, "इसके लिए हमें अपने सीवेज सिस्टम को फिर से डिजाइन करना होगा ताकि वे किफायती और टिकाऊ हों।"
हरित ऊर्जा से ईंधन का दाम सस्ता होगा
अमेरिकी ऊर्जा विभाग के लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर हम वर्ष 2047 तक हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल कर लेते हैं तो इसका सबसे अधिक लाभ उपभोक्ताओं को होगा। भारत में लोगों को यह सस्ते दामों में उपलब्ध होगी और इससे तकरीबन 2.5 खरब अमेरिकी डॉलर तक की बचत होगी। रिपोर्ट का शीर्षक 'पाथ-वे-टू-आत्मनिर्भर' रखा गया है और इसमें भारत में ऊर्जा की सबसे अधिक खपत करने वाले क्षेत्रों का अध्ययन किया गया है। जिसमें परिवहन, बिजली उत्पादन और औद्योगिक इकाइयों को शामिल किया गया है। इसमें हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने से पर्यावरण की सुरक्षा तो की ही जा सकेगी, साथ में इससे बहुत बड़ा आर्थिक लाभ भी होगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में लिथियम के भंडार भी हैं। ऐसे में यह भारत को हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लागत को प्रभावी तरीके से कम करने में मदद करेगा। इसके साथ ही भारत हरित ऊर्जा के लक्ष्यों को सबसे कम कीमत पर हासिल करने वाला देश है।
वैश्विक ऊर्जा खपत में 2050 तक हमारी हिस्सेदारी दोगुनी हो जाएगी। अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऊर्जा की मांग चौगुनी हो जाएगी। हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खपत का 90 प्रतिशत तेल, 80 प्रतिशत औद्योगिक कोयला, 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का आयात करना पड़ता है और चूंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत में अस्थिरता रहती है इसलिए इसका सबसे गंभीर प्रभाव अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के ऊपर होती है।
रोजगार के लिए एनर्जी सेक्टर
रिन्यूबल एनर्जी को अपनाने से हर साल नई ग्रीन एनर्जी सेक्टर में जो नौकरियां पैदा होंगी, वे श्रम बाजार (लेबर मार्केट) में एंट्री करने वाले युवाओं की संख्या के बराबर नहीं होंगी। केलकर ने कहा, ‘लेकिन हर साल जॉब मार्केट में एंट्री करने वाली नई वर्कफोर्स (कार्यबल) की संख्या पैदा होने वाली नई नौकरियों के मुकाबले ज्यादा है और यह एक समस्या बन जाएगी।’
इलेक्ट्रिक वाहनों को मिलेगा बढ़ावा
भारत सरकार इलेक्ट्रिक ऊर्जा से संचालित वाहनों को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए लिथियम आधारित बैटरी के विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए नेशनल हाईवे, औद्योगिक कॉरिडोर के साथ-साथ देश भर में चार्जिंग स्टेशन का निर्माण किया जा रहा है। इसके साथ ही भारत सरकार ने 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों को बदलने के लिए स्क्रैपेज पॉलिसी लाई है, ताकि उनसे निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके। इसके लिए सरकार पुरानी गाड़ियों को हटाने के लिए लोगों को वित्तीय मदद भी देगी। बैटरी आधारित वाहनों के अलावा ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए सरकार ने अलग से 19 हजार 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. इसके जरिए सरकार का जोर निजी कंपनियों, नए उद्यमियों को ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल के निर्माण के लिए वित्तीय मदद पहुंचाना है ताकि हम स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकें। अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार भारत 2035 तक 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहनों को संचालित करने वाला देश बन जाएगा। नेक्स्ट मीडिया के सीईओ अनस जावेद कहते हैं कि भारत 2047 तक स्वच्छ प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग बढ़ने से 2047 तक कच्चे तेल के आयात में 90% (या 240 बिलियन डॉलर) से अधिक की बचत हो सकती है, जबकि हरित हाइड्रोजन आधारित और विद्युतीकृत औद्योगिक उत्पादन से औद्योगिक कोयला आयात में 95% की कमी आएगी।
विद्युत मंत्रालय ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था. जिसमें वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधनों से 500 गीगा वाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया है। समिति ने राज्यों और अन्य हितधारकों के परामर्श से 500 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया है। वर्ष 2030 तक 537 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों की व्यापक योजना पर काम चल रहा है। देश में वर्तमान में स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 409 गीगा वॉट है जिसमें गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की हिस्सेदारी 173 गीगा वॉट है, जो कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 42 प्रतिशत है। इसे और बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार किसानों को सोलर पंप सेट, घरों में रूफ टॉप सोलर आधारित प्रणाली को स्थापित करने के लिए भी सब्सिडी दे रही है। वहीं, अमेरिकी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को वर्ष 2040 तक 80 प्रतिशत और 2047 में 90 प्रतिशत तक हासिल कर लेगा।
ओपन सोर्स टूल से लगातार हो रहा आकलन
भारत सरकार की विभिन्न हरित ऊर्जा नीतियों के एकीकृत प्रभाव का आकलन करने के लिए एक संशोधित भारत ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य (आईईएसएस) 2047 (आईईएसएस 2047वी 3.0) बनाया गया है। एक ओपन-सोर्स टूल, आईईएसएस में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों जैसे हरित हाइड्रोजन, ऊर्जा भंडारण, नवीकरणीय खरीद दायित्व, पीएम-कुसुम, अपतटीय पवन रणनीति, इलेक्ट्रिक वाहन नीति, ऊर्जा दक्षता इत्यादि से संबंधित कई नीतियों को शामिल किया गया है। देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति का आकलन करने से संबंधित यह टूल 2047 तक उत्सर्जन, लागत, भूमि और पानी की आवश्यकताओं का विश्लेषण करने में सहायता प्रदान करेगा। आईईएसएस 2047 एक उपयोगकर्ता-अनुकूल आपसी-संवाद आधारित टूल है, जो मंत्रालयों/विभागों को नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए विभिन्न प्रकार के ऊर्जा स्रोतों को अपनाने से जुड़े परिदृश्य को विकसित करने में मदद कर सकता है। यह टूल नेट-जीरो तरीकों के आपस में विभिन्न परिवर्तन और संयोजन की सुविधा देता है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं और अनुमानों की गणना करने की क्षमता प्रदान करता है और इस प्रकार अनुमानों के लिए बाहरी एजेंसियों पर भारत की निर्भरता को कम करता है।
आईआईटी बॉम्बे की मदद से डिजाइन किया गया, यह संशोधित आईईएसएस 2047 को वार्षिक आधार पर अपडेट किया जाएगा। बेसलाइन को 2020 में मानकीकृत किया गया है और इसकी 2022 तक के लिए जांच की गई है।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक
संसद ने ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया है, जिसमें बायोमास, इथेनॉल और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य किया गया है, और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग को बढ़ावा देने के लिए एक विधेयक भी पारित किया गया है। तत्कालीन ऊर्जा मंत्री ने कहा था कि संशोधनों का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और घरेलू कार्बन बाजार के विकास को बढ़ावा देना है।
केंद्र ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पहले ही विभिन्न कदम उठाए हैं, जिनमें स्वच्छ भारत मिशन, हरित कौशल विकास कार्यक्रम, नमामि गंगे कार्यक्रम, प्रतिपूरक वनरोपण निधि अधिनियम (कैम्पा), राष्ट्रीय हरित भारत मिशन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम तथा प्राकृतिक संसाधनों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों का संरक्षण शामिल हैं।
मंत्रालयों के बीच तालमेल की आवश्यकता
जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए MoEFCC, MoES, DA&FW, जल शक्ति (जल संसाधन), DST, DBT और MeitY जैसे विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल की आवश्यकता है। MoES डेटा नेटवर्क, मॉडलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और AI/ML-संचालित डाउनस्केलिंग को गतिशील मॉडल भविष्यवाणियों और अनुमानों का नेतृत्व कर सकता है ताकि निर्णयों के लिए स्थानिक और लौकिक पैमाने पर हितधारकों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। ये निर्णय हीटवेव, अत्यधिक वर्षा, बाढ़, सूखा, स्वास्थ्य प्रकोप, फसल के नुकसान आदि से संबंधित हैं।
सरकारों, एजेंसियों, संस्थाओं की भूमिका
सभी सरकारें सूचना के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से एक कमांड लाइन में नेटवर्क की जाएंगी ताकि स्थिरता और नेट जीरो से भटकाव को कम किया जा सके। आपदा की तैयारी, प्रबंधन, रिकवरी और शमन आवश्यक हैं, लेकिन गैर-लाभकारी और शैक्षणिक संस्थानों के नेटवर्क द्वारा स्थिरता मार्ग पर तेजी से वापसी सुनिश्चित की जाएगी।
बेहतर तालमेल और नेटवर्क बनाने की आवश्यकता
2047 तक, स्थिरता का मार्ग अच्छी तरह से प्रशस्त होना चाहिए। इसके लिए न केवल सभी मंत्रालयों के बीच तालमेल की आवश्यकता है, बल्कि शैक्षणिक और सरकारी, राज्य और स्थानीय एजेंसियों सहित सभी संस्थानों में एक बेहतर नेटवर्क बनाने की भी आवश्यकता है, इससे भोजन, कृषि, जल, ऊर्जा, स्वास्थ्य, परिवहन, बुनियादी ढांचा, भवन आदि पर समग्र तरीके से निर्णय लिए जा सकेंगे।
भारत ने मौसम और जलवायु पूर्वानुमान तथा आपदा प्रबंधन के लिए समय पूर्व चेतावनी में भारी निवेश किया है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी ने जान-माल के नुकसान को कम करने के विशाल कार्य को अविश्वसनीय सफलता के साथ पूरा किया है। यह और बेहतर हो सकता है तथा देश की अर्थव्यवस्था को स्थिरता के मार्ग पर आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
स्मार्ट हरित भवन एवं शहर
नेक्स्ट मीडिया के सीईओ अनस जावेद कहते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में जलवायु परिवर्तन का जोखिम लगातार बढ़ रहा है। यहां अधिकांश श्रम शक्ति अभी भी कृषि में लगी हुई है। शहरीकरण युवाओं को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ रोजगार प्रदान करने में भी मददगार साबित होता है। आईटी, मनोरंजन, खेल और सर्विस सेक्टर में युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं बनती है। भारत को झुग्गी-झोपड़ियों, पानी की कमी, वायु और जल प्रदूषण और गर्मी के तनाव को संतुलित करने के लिए शहरीकरण की स्थिरता को संभालने के लिए तैयार रहना चाहिए। वैश्विक तापमान वृद्धि के साथ उत्तरार्द्ध में और भी बदतर हो जाएगा, जिससे बढ़ते जलवायु जोखिमों से निपटने के लिए तत्काल अनुकूलन उपायों की आवश्यकता होगी।
स्मार्ट ग्रीन बिल्डिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर में इनोवेशन में ऊर्जा संरक्षण और उपयोग, जल-ऊर्जा संबंध, उत्सर्जन प्रबंधन, हरित और स्मार्ट परिवहन, और स्मार्ट ग्रीन बिल्डिंग में नई तकनीक पर काम करना होगा साथ ही इसमें निवेश भी अधिक करना होगा। खाद्य सुरक्षा में नवाचारों के लिए वर्टिकल एग्रीकल्चर, स्मार्ट एग्रीकल्चर के लिए स्पेस-आधारित डेटा संग्रह और विश्लेषण, भोजन, पानी और ऊर्जा की बर्बादी को कम करने के लिए उपाय अपनाने होंगे।
जलवायु अनुकूलित कृषि
जलवायु अनुकूलित कृषि अच्छी तरह से चल रही है, जिसका प्राथमिक लक्ष्य किसानों की आय को दोगुना करना है। कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। 2047 तक, इसे जीनोमिक्स, आणविक जीव विज्ञान, भू-सूचना विज्ञान, स्मार्ट सिंचाई, एकीकृत रोग प्रबंधन के साथ मैनेज किया जाएगा। जलवायु-स्मार्ट कृषि को ब्लू इकोनॉमी से मजबूती से जोड़ा जाएगा, जिससे 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ट्रिलियन डॉलर उत्पन्न होने की उम्मीद है।
ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ है। सौर, पवन और हाइड्रोजन नेट ज़ीरो के लिए ऊर्जा मार्ग के प्रमुख स्तंभ होंगे। 2047 तक भारत धुंध और वायु प्रदूषण से मुक्त हो जाएगा। भारत 2047 तक नेट जीरो हासिल कर सकता है, बशर्ते कि ऊपर से नीचे तक तालमेल और समर्थन हो।
भारत 2047 तक ब्लू इकोनॉमी के बढ़ते योगदान के साथ मजबूत आर्थिक विकास की उम्मीद कर सकता है, जिससे प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद और मानव विकास सूचकांक विकसित दुनिया के बराबर हो जाएगा।
क्लाइमेट चेंज की कार्यकारी निदेशक दिव्या शर्मा कहती हैं कि विकसित भारत 2047 हर भारतीय के लिए विशेष यात्रा है। विश्व इसे विकास की यात्रा समझेगा पर भारत के लिए ये अपने स्वर्णिम इतिहास को पुनर्जीवित करने की यात्रा होगी। हम हमेशा से ही प्रकृति के साथ रहने वाली सभ्यता रहे हैं, प्रकृति का सम्मान, उसका संरक्षण हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग रहा है। आश्चर्य नहीं कि आज भी भारत के प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के आंकड़े अन्य विकसित देशों से कही बेहतर हैं। विकसित भारत की नीतियों में हमारी इसी शक्ति को अग्रिम रखना होगा। विश्व के देश जल्दी से जल्दी नेट जीरो प्राप्त करने को बढ़ावा दे रहे हैं, भारत ने अपने सामने 2070 तक नेट जीरो होने का लक्ष्य रखा है। विकसित भारत की नीतियों में ये लक्ष्य सर्वोपरि होना चाहिए। ये विकास बदलते समय के लिए भारत को तैयार तो करे ही, पर पर्यावरण , प्रकृति और संसाधन की शोषण से परे , उनके संरक्षण पर निर्भर हो।
टेरी की डायरेक्टर जनरल डा. विभा धवन का कहना है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि पर्यावरणीय चिंताओं और विकास की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बदलाव वाली नीतियों के साथ सही तरीके से चला जा सकता है। जैसा कि भारत पर्यावरण और पारिस्थितिक रूप से सुदृढ़ तरीके से आगे विकास करना चाहता है, हमें भूमि, जल और वायु की गुणवत्ता में आई गिरावट की जटिलताओं पर ध्यान देना चाहिए और टिकाऊ विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विकसित भारत के लिए कई विचारों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जैसे स्वच्छ ऊर्जा, लचीले बुनियादी ढांचे और समुदायों को बढ़ाना और स्वच्छ हवा और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर (30 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आकांक्षाओं के बारे में बात करते हुए डब्ल्यूआरआई की कार्यकारी निदेशक उल्का केलकर ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश एनर्जी के क्षेत्र में गरीब रहकर अमीर नहीं बना है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कुछ बड़ी समस्याएं हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने का भारत का उद्देश्य केवल कार्बन लैंस के जरिये नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, ‘जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का जोखिम शुरू होता है, पॉलिसी को भी उसी के मुताबिक अनुकूल और डिसेंट्रलाइज्ड बनाना होगा। यहां तक कि न्यू एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर या ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर भी जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में होंगे।’
सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि ‘जैसे-जैसे जीवाश्म ईंधन कम हो जाएगा, कर राजस्व भी कम हो जाएगा। जब तक हम ग्रीन एनर्जी से राजस्व उत्पन्न करने के नए तरीके नहीं खोजेंगे, 2047 तक 1.5 ट्रिलियन डॉलर (1.5 लाख करोड़ डॉलर) का नुकसान हो जाएगा’।
सरकारी योजनाओं के लक्ष्यों का निर्धारण आवश्यक
नारायण ने कहा कि किसी भी सरकारी योजना का अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होता है कि यह हर बार लोगों तक पहुंचे। अब जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी इसमें शामिल हो गया है, जहां हर दिन देश का कोई न कोई हिस्सा कम से कम एक चरम मौसम की घटना से प्रभावित हो रहा है। इसका विकास कार्यक्रमों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है - चरम मौसम की घटनाओं के कारण सूखा, बाढ़ और आजीविका का नुकसान बढ़ता है, जिससे सरकार के संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
डा. विभा धवन का कहना है कि सभी क्षेत्रों में इंटरैक्शन के साथ, उद्योग को कृषि अपशिष्ट को सामग्री या ऊर्जा रूपों के रूप में रीसाइक्लिंग / प्रसंस्करण करने, उभरती जैव ईंधन प्रौद्योगिकियों में आर एंड डी में निवेश करने, प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं के उपयोग को बढ़ाने में योगदान देना चाहिए। इससे न केवल दक्षता में वृद्धि होगी बल्कि यह जीएचजी उत्सर्जन और स्थानीय प्रदूषकों को भी कम करने में सहायक होगा। इसके अलावा इसका असर संपूर्ण वैल्यू चेन और पानी के संसाधनों पर भी सकारात्मक तौर पर पड़ेगा।
खेती के तरीके में बदलाव से होगा फायदा
डा. विभा धवन का कहना है कि कृषि क्षेत्र के परिणामस्वरूप जीएचजी उत्सर्जन होता है। वहीं जलवायु परिवर्तन, फसल चक्र और पैदावार को भी प्रभावित करता है। हालांकि, फसल पैटर्न में बदलाव का विकल्प खाद्य और पोषण सुरक्षा, भूमि और पानी की उपलब्धता, आजीविका और कृषि आय आदि पर निर्भर करता है। एकीकृत खेती को बढ़ावा देने, कृषि प्रबंधन प्रथाओं में बदलाव, जलवायु प्रतिरोधी और जलवायु अनुकूल फसलें आदि टिकाऊ कृषि विकास में योगदान दे सकती हैं।
इंडस्ट्री को साथ आना होगा
नारायण ने कहा, ‘भारतीय उद्योग परिवर्तन की जरूरतों के बारे में अधिक जागरूक हो रहा है, उन कार्यों को करने के लिए जो उनके साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अच्छे हैं। लोहा, सीमेंट, स्टील जैसे क्षेत्रों में मजबूती की जरूरत है। उद्योग अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है।’ उन्होंने कहा कि ग्रीन एनर्जी फाइनैंसिंग अभी भी प्राइवेट सेक्टर से पिछड़ा हुआ है। हमें जिस परिवर्तन की जरूरत है उसे पूरा करने के लिए पूंजी की लागत अभी भी बहुत ज्यादा है। आप रिन्यूबल एनर्जी प्रोजेक्ट को प्रैक्टिकल नहीं बना सकते।
पृथ्वी तेजी से हो रही गर्म
एक्सपर्ट मानते हैं कि पृथ्वी पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को सीमित करने के लिए कार्बन बजट कम होता जा रहा है। बजट से अधिक होने पर समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, मौसम खराब होगा, गर्मी बढ़ेगी, फसलें खराब होंगी, जलवायु के कारण पलायन होगा, जंगल में आग लगेगी, जैव विविधता खत्म होगी, समुद्र में अम्लता बढ़ेगी और भी बुरा होगा। हम जलवायु परिवर्तन के ऐसे खतरनाक बिंदुओं को भी झेलने के खतरे में होंगे, जिसमें कुछ प्राकृतिक संतुलन अपरिवर्तनीय रूप से नष्ट हो जाएंगे। भारत 2047 तक नेट जीरो हासिल कर सकता है, बशर्ते कि ऊपर से नीचे तक तालमेल और समर्थन हो।
पानी की हर बूंद का इस्तेमाल हो और प्रदूषण पर लगे लगाम
सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि सभी के लिए स्वच्छ जल' प्राप्त करने के लिए, भारत को शहरों में अधिक से अधिक दूर से पानी लाने के तरीके पर पुनर्विचार करना होगा। इससे पानी की बर्बादी होती है और यह वहनीय नहीं है। सुनीता नारायण के मुताबिक हमें तत्काल बड़े पैमाने पर पानी के भंडारण पर काम करने के साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि पानी का वाष्पीकरण कम से कम हो। इसके लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। बढ़ते तापमान के साथ वाष्पीकरण की दर बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि पानी के भंडारण के लिए सबसे बेहतर विकल्प भूमिगत जल भंडारण, या कुओं पर काम करना है। उन्होंने कहा कि स्वच्छ वायु प्राप्त करने के लिए भी बहुत कुछ किया जाना चाहिए। स्वच्छ ऊर्जा के एजेंडे को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। हमें अपने स्वच्छ ऊर्जा पोर्टफोलियो को बढ़ाने की जरूरत है, न केवल बुनियादी ढांचे में निवेश के मामले में बल्कि उत्पादन के मामले में भी। हम जानते हैं कि अक्षय ऊर्जा अब भी देश में कुल बिजली की जरूरतों का 9-11 प्रतिशत आपूर्ति करती है। इसे तेजी से बढ़ाने की जरूरत है।
ऐसा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के कारण होने वाले प्रदूषण को कम करके, प्राकृतिक गैस सहित ईंधन के स्वच्छ स्रोतों को अपनाकर, तथा भारतीय शहरों में मोटरीकरण की बढ़ती संख्या को कम करके किया जा सकता है। समय की मांग है कि अपशिष्ट जल की हर बूंद को रिसाइकिल किया जाए ताकि देश की नदियां नष्ट न हों। नारायण ने कहा, "इसके लिए हमें अपने सीवेज सिस्टम को फिर से डिजाइन करना होगा ताकि वे किफायती और टिकाऊ हों।"
हरित ऊर्जा से ईंधन का दाम सस्ता होगा
अमेरिकी ऊर्जा विभाग के लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर हम वर्ष 2047 तक हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल कर लेते हैं तो इसका सबसे अधिक लाभ उपभोक्ताओं को होगा। भारत में लोगों को यह सस्ते दामों में उपलब्ध होगी और इससे तकरीबन 2.5 खरब अमेरिकी डॉलर तक की बचत होगी। रिपोर्ट का शीर्षक 'पाथ-वे-टू-आत्मनिर्भर' रखा गया है और इसमें भारत में ऊर्जा की सबसे अधिक खपत करने वाले क्षेत्रों का अध्ययन किया गया है। जिसमें परिवहन, बिजली उत्पादन और औद्योगिक इकाइयों को शामिल किया गया है। इसमें हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने से पर्यावरण की सुरक्षा तो की ही जा सकेगी, साथ में इससे बहुत बड़ा आर्थिक लाभ भी होगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में लिथियम के भंडार भी हैं। ऐसे में यह भारत को हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लागत को प्रभावी तरीके से कम करने में मदद करेगा। इसके साथ ही भारत हरित ऊर्जा के लक्ष्यों को सबसे कम कीमत पर हासिल करने वाला देश है।
वैश्विक ऊर्जा खपत में 2050 तक हमारी हिस्सेदारी दोगुनी हो जाएगी। अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऊर्जा की मांग चौगुनी हो जाएगी। हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खपत का 90 प्रतिशत तेल, 80 प्रतिशत औद्योगिक कोयला, 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का आयात करना पड़ता है और चूंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत में अस्थिरता रहती है इसलिए इसका सबसे गंभीर प्रभाव अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के ऊपर होती है।
रोजगार के लिए एनर्जी सेक्टर
रिन्यूबल एनर्जी को अपनाने से हर साल नई ग्रीन एनर्जी सेक्टर में जो नौकरियां पैदा होंगी, वे श्रम बाजार (लेबर मार्केट) में एंट्री करने वाले युवाओं की संख्या के बराबर नहीं होंगी। केलकर ने कहा, ‘लेकिन हर साल जॉब मार्केट में एंट्री करने वाली नई वर्कफोर्स (कार्यबल) की संख्या पैदा होने वाली नई नौकरियों के मुकाबले ज्यादा है और यह एक समस्या बन जाएगी।’
इलेक्ट्रिक वाहनों को मिलेगा बढ़ावा
भारत सरकार इलेक्ट्रिक ऊर्जा से संचालित वाहनों को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए लिथियम आधारित बैटरी के विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए नेशनल हाईवे, औद्योगिक कॉरिडोर के साथ-साथ देश भर में चार्जिंग स्टेशन का निर्माण किया जा रहा है। इसके साथ ही भारत सरकार ने 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों को बदलने के लिए स्क्रैपेज पॉलिसी लाई है, ताकि उनसे निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके। इसके लिए सरकार पुरानी गाड़ियों को हटाने के लिए लोगों को वित्तीय मदद भी देगी। बैटरी आधारित वाहनों के अलावा ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए सरकार ने अलग से 19 हजार 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. इसके जरिए सरकार का जोर निजी कंपनियों, नए उद्यमियों को ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल के निर्माण के लिए वित्तीय मदद पहुंचाना है ताकि हम स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकें। अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार भारत 2035 तक 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहनों को संचालित करने वाला देश बन जाएगा। नेक्स्ट मीडिया के सीईओ अनस जावेद कहते हैं कि भारत 2047 तक स्वच्छ प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग बढ़ने से 2047 तक कच्चे तेल के आयात में 90% (या 240 बिलियन डॉलर) से अधिक की बचत हो सकती है, जबकि हरित हाइड्रोजन आधारित और विद्युतीकृत औद्योगिक उत्पादन से औद्योगिक कोयला आयात में 95% की कमी आएगी।
विद्युत मंत्रालय ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था. जिसमें वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधनों से 500 गीगा वाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया है। समिति ने राज्यों और अन्य हितधारकों के परामर्श से 500 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया है। वर्ष 2030 तक 537 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों की व्यापक योजना पर काम चल रहा है। देश में वर्तमान में स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 409 गीगा वॉट है जिसमें गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की हिस्सेदारी 173 गीगा वॉट है, जो कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 42 प्रतिशत है। इसे और बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार किसानों को सोलर पंप सेट, घरों में रूफ टॉप सोलर आधारित प्रणाली को स्थापित करने के लिए भी सब्सिडी दे रही है। वहीं, अमेरिकी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को वर्ष 2040 तक 80 प्रतिशत और 2047 में 90 प्रतिशत तक हासिल कर लेगा।
ओपन सोर्स टूल से लगातार हो रहा आकलन
भारत सरकार की विभिन्न हरित ऊर्जा नीतियों के एकीकृत प्रभाव का आकलन करने के लिए एक संशोधित भारत ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य (आईईएसएस) 2047 (आईईएसएस 2047वी 3.0) बनाया गया है। एक ओपन-सोर्स टूल, आईईएसएस में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों जैसे हरित हाइड्रोजन, ऊर्जा भंडारण, नवीकरणीय खरीद दायित्व, पीएम-कुसुम, अपतटीय पवन रणनीति, इलेक्ट्रिक वाहन नीति, ऊर्जा दक्षता इत्यादि से संबंधित कई नीतियों को शामिल किया गया है। देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति का आकलन करने से संबंधित यह टूल 2047 तक उत्सर्जन, लागत, भूमि और पानी की आवश्यकताओं का विश्लेषण करने में सहायता प्रदान करेगा। आईईएसएस 2047 एक उपयोगकर्ता-अनुकूल आपसी-संवाद आधारित टूल है, जो मंत्रालयों/विभागों को नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए विभिन्न प्रकार के ऊर्जा स्रोतों को अपनाने से जुड़े परिदृश्य को विकसित करने में मदद कर सकता है। यह टूल नेट-जीरो तरीकों के आपस में विभिन्न परिवर्तन और संयोजन की सुविधा देता है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं और अनुमानों की गणना करने की क्षमता प्रदान करता है और इस प्रकार अनुमानों के लिए बाहरी एजेंसियों पर भारत की निर्भरता को कम करता है।
आईआईटी बॉम्बे की मदद से डिजाइन किया गया, यह संशोधित आईईएसएस 2047 को वार्षिक आधार पर अपडेट किया जाएगा। बेसलाइन को 2020 में मानकीकृत किया गया है और इसकी 2022 तक के लिए जांच की गई है।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक
संसद ने ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया है, जिसमें बायोमास, इथेनॉल और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य किया गया है, और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग को बढ़ावा देने के लिए एक विधेयक भी पारित किया गया है। तत्कालीन ऊर्जा मंत्री ने कहा था कि संशोधनों का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और घरेलू कार्बन बाजार के विकास को बढ़ावा देना है।
केंद्र ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पहले ही विभिन्न कदम उठाए हैं, जिनमें स्वच्छ भारत मिशन, हरित कौशल विकास कार्यक्रम, नमामि गंगे कार्यक्रम, प्रतिपूरक वनरोपण निधि अधिनियम (कैम्पा), राष्ट्रीय हरित भारत मिशन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम तथा प्राकृतिक संसाधनों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों का संरक्षण शामिल हैं।
मंत्रालयों के बीच तालमेल की आवश्यकता
जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए MoEFCC, MoES, DA&FW, जल शक्ति (जल संसाधन), DST, DBT और MeitY जैसे विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल की आवश्यकता है। MoES डेटा नेटवर्क, मॉडलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और AI/ML-संचालित डाउनस्केलिंग को गतिशील मॉडल भविष्यवाणियों और अनुमानों का नेतृत्व कर सकता है ताकि निर्णयों के लिए स्थानिक और लौकिक पैमाने पर हितधारकों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। ये निर्णय हीटवेव, अत्यधिक वर्षा, बाढ़, सूखा, स्वास्थ्य प्रकोप, फसल के नुकसान आदि से संबंधित हैं।
सरकारों, एजेंसियों, संस्थाओं की भूमिका
सभी सरकारें सूचना के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से एक कमांड लाइन में नेटवर्क की जाएंगी ताकि स्थिरता और नेट जीरो से भटकाव को कम किया जा सके। आपदा की तैयारी, प्रबंधन, रिकवरी और शमन आवश्यक हैं, लेकिन गैर-लाभकारी और शैक्षणिक संस्थानों के नेटवर्क द्वारा स्थिरता मार्ग पर तेजी से वापसी सुनिश्चित की जाएगी।
बेहतर तालमेल और नेटवर्क बनाने की आवश्यकता
2047 तक, स्थिरता का मार्ग अच्छी तरह से प्रशस्त होना चाहिए। इसके लिए न केवल सभी मंत्रालयों के बीच तालमेल की आवश्यकता है, बल्कि शैक्षणिक और सरकारी, राज्य और स्थानीय एजेंसियों सहित सभी संस्थानों में एक बेहतर नेटवर्क बनाने की भी आवश्यकता है, इससे भोजन, कृषि, जल, ऊर्जा, स्वास्थ्य, परिवहन, बुनियादी ढांचा, भवन आदि पर समग्र तरीके से निर्णय लिए जा सकेंगे।
भारत ने मौसम और जलवायु पूर्वानुमान तथा आपदा प्रबंधन के लिए समय पूर्व चेतावनी में भारी निवेश किया है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी ने जान-माल के नुकसान को कम करने के विशाल कार्य को अविश्वसनीय सफलता के साथ पूरा किया है। यह और बेहतर हो सकता है तथा देश की अर्थव्यवस्था को स्थिरता के मार्ग पर आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
स्मार्ट हरित भवन एवं शहर
नेक्स्ट मीडिया के सीईओ अनस जावेद कहते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में जलवायु परिवर्तन का जोखिम लगातार बढ़ रहा है। यहां अधिकांश श्रम शक्ति अभी भी कृषि में लगी हुई है। शहरीकरण युवाओं को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ रोजगार प्रदान करने में भी मददगार साबित होता है। आईटी, मनोरंजन, खेल और सर्विस सेक्टर में युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं बनती है। भारत को झुग्गी-झोपड़ियों, पानी की कमी, वायु और जल प्रदूषण और गर्मी के तनाव को संतुलित करने के लिए शहरीकरण की स्थिरता को संभालने के लिए तैयार रहना चाहिए। वैश्विक तापमान वृद्धि के साथ उत्तरार्द्ध में और भी बदतर हो जाएगा, जिससे बढ़ते जलवायु जोखिमों से निपटने के लिए तत्काल अनुकूलन उपायों की आवश्यकता होगी।
स्मार्ट ग्रीन बिल्डिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर में इनोवेशन में ऊर्जा संरक्षण और उपयोग, जल-ऊर्जा संबंध, उत्सर्जन प्रबंधन, हरित और स्मार्ट परिवहन, और स्मार्ट ग्रीन बिल्डिंग में नई तकनीक पर काम करना होगा साथ ही इसमें निवेश भी अधिक करना होगा। खाद्य सुरक्षा में नवाचारों के लिए वर्टिकल एग्रीकल्चर, स्मार्ट एग्रीकल्चर के लिए स्पेस-आधारित डेटा संग्रह और विश्लेषण, भोजन, पानी और ऊर्जा की बर्बादी को कम करने के लिए उपाय अपनाने होंगे।
जलवायु अनुकूलित कृषि
जलवायु अनुकूलित कृषि अच्छी तरह से चल रही है, जिसका प्राथमिक लक्ष्य किसानों की आय को दोगुना करना है। कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। 2047 तक, इसे जीनोमिक्स, आणविक जीव विज्ञान, भू-सूचना विज्ञान, स्मार्ट सिंचाई, एकीकृत रोग प्रबंधन के साथ मैनेज किया जाएगा। जलवायु-स्मार्ट कृषि को ब्लू इकोनॉमी से मजबूती से जोड़ा जाएगा, जिससे 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ट्रिलियन डॉलर उत्पन्न होने की उम्मीद है।
ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ है। सौर, पवन और हाइड्रोजन नेट ज़ीरो के लिए ऊर्जा मार्ग के प्रमुख स्तंभ होंगे। 2047 तक भारत धुंध और वायु प्रदूषण से मुक्त हो जाएगा। भारत 2047 तक नेट जीरो हासिल कर सकता है, बशर्ते कि ऊपर से नीचे तक तालमेल और समर्थन हो।
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