Lok Sabha Speaker: कैसे होता है लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव? जानिए कितना पावरफुल है ये पद

 Lok Sabha Speaker संसद के आगामी पहले सत्र के दौरान 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। ऐसे में ये जानना अहम हो जाता है कि अखिर लोकसभा अध्यक्ष चुने कैसे जाते हैं उनके कार्य एवं शक्तियां क्या होती हैं और ये पद इतना अहम क्यों है खासकर कि गठबंधन की सरकारों में। जानिए इससे जुड़े सभी सवालों के जवाब।

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लोकसभा चुनाव के बाद देश में नई सरकार का गठन हो चुका है। अब 24 जून से संसद का पहला सत्र शुरू होगा, जिसमें सभी नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्य शपथ ग्रहण करेंगे। इसी के साथ 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। अब तक एनडीए ने लोकसभा अध्यक्ष के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है।


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जानकारी के अनुसार विपक्ष ने लोकसभा में उपाध्यक्ष पद की मांग की है और चेतावनी दी है कि अगर सरकार किसी विपक्षी नेता को उपाध्यक्ष बनाने पर सहमत नहीं हुई तो वे लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ेंगे। अगर विपक्ष लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी खड़ा करता है तो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा, जब लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा।

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ऐसे में ये जानना अहम हो जाता है कि अखिर लोकसभा अध्यक्ष चुने कैसे जाते हैं, उनके कार्य एवं शक्तियां क्या होती हैं और ये पद इतना अहम क्यों है, खासकर कि गठबंधन की सरकारों में। बता दें कि लोकसभा देश की सर्वोच्च विधायसी संस्था है। सदन के कामकाज को संचालित करने के लिए एक अध्यक्ष को चुना जाता है।

कैसे होता है लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव




लोकसभा अध्यक्ष बनने के लिए सबसे पहली शर्त होती है कि स्पीकर को सदन का सदस्य होना चाहिए। इसके अलावा अध्यक्ष पद के लिए कोई विशेष क्वालिफिकेशन का प्रावधान नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष के साथ पीठासीन अधिकारियों और उपाध्यक्ष का चयन सदन के सदस्यों द्वारा साधारण बहुमत के आधार पर किया जाता है।

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आमतौर पर सत्ताधारी दल के सदस्य ही स्पीकर पद के लिए चुने जाते हैं। परंपरा के अनुसार सत्ताधारी पार्टी अन्य दलों के नेताओं के साथ विचार-विमर्श के बाद अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार की घोषणा करती है। उम्मीदवार का फैसला किए जाने के बाद संसदीय कार्य मंत्री या प्रधानमंत्री अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम का प्रस्ताव रखते हैं। फिर सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिए जाते हैं। हालांकि, अगर किसी नाम पर सदस्य एकमत न हों तो ऐसी स्थिति में अध्यक्ष के चयन के लिए वोटिंग कराई जाती है।

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क्या होती हैं लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां

लोकसभा अध्यक्ष सदन की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं। उन पर सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से संचालित करने की जिम्मेदारी होती है। सदन के अध्यक्ष ही सदस्यों को बोलने की अनुमति देते हैं और उनके वक्तव्य का समय निर्धारित करते हैं। इसके अलावा अगर कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है तो अध्यक्ष उसकी सदस्यता भी निलंबित कर सकते हैं।

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किसी प्रस्ताव पर वोटिंग के समय भी स्पीकर की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। अगर किसी विधेयक पर पक्ष और विपक्ष, दोनों ओर से समान संख्या में मत पड़ते हैं तो ऐसी स्थिति में लोकसभा स्पीकर के पास वोट करने का अधिकार होता है। स्पीकर अपने वोट से तय करते हैं कि विधेयक पास होगा या नहीं।

संविधान संशोधन के बाद बढ़ी शक्तियां


52वें दल बदल विरोधी संविधान संशोधन अधिनियम 1985 के बाद लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां और बढ़ गई हैं और उनकी भूमिका बेहद अहम हो गई है। इस संशोधन के तहत स्पीकर दल-बदल कानून के अंतर्गत सदस्यों की सदस्यता भी रद्द कर सकते हैं। इस तरह अध्यक्ष के पास न्यायिक शक्तियां भी होती हैं।

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